सभी जातियों को मिलेगा आरक्षण, मोदी सरकार कर रही है इस फार्मूले पर विचार!
संवाद न्यूज़ ब्यूरो
केंद्र की मोदी सरकार देश में उठ रही आरक्षण की मांग से निपटने का फॉर्मूला तैयार करने पर विचार कर रही है. वह जाति विशेष की बजाए आर्थिक आधार पर सभी जातियों को आरक्षण देने पर मंथन शुरू कर दिया है. देश में अलग—अलग जातियों की आरक्षण की मांग को देखते हुए सरकार ने इस फॉर्मूले पर चर्चा की पहल की है.
आरक्षण खत्म और देने की उठती रही है मांग
देश के कई राज्यों में आरक्षण को लेकर तमाम समुदायों अपनी मांग बुलंद करते आ रहे हैं. कई जगह यह आंदोलन हिंसात्मक रुप भी लेता रहा है. वैसे देखा जाए तो आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख साफ है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता.
मौजूदा व्यवस्था के तहत देश में अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण है.

आरक्षण को लेकर अक्सर बहस छिड़ती रही है. संविधान में सीधे तौर पर आरक्षण का उल्लेख नहीं है. लेकिन, संविधान की मूल भावना के मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था है. संविधान के अनुच्छेद 46 में समाज में शैक्षणिक और आर्थिक रुप से पिछड़े लोगों के हित का खास ख्याल रखने की जिम्मेदारी सरकार की होने की बात कही गई है. खास तौर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अन्याय और शोषण से बचाए जाने की बात दर्ज है.
ब्रिटिश हुकूमत में आरक्षण की हुई शुरूआत
आरक्षण की व्यवस्था की शुरूआत देश में अंग्रेजी शासन के दौरान हुई थी. वर्ष 1950 में एससी के लिए 15, एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. केंद्र सरकार ने शुरूआती दौर में शिक्षा, नौकरी में आरक्षण लागू किया था. इसके बाद राज्य सरकारों ने भी यह व्यवस्था लागू कर दी. प्रदेशों में जनसंख्या के लिहाज से एससी-एसटी को आरक्षण का लाभ है.
आरक्षण लागू करने के दौरान 10 वर्षों में समीक्षा किए जाने की बात कही गई थी. वर्ष 1979 में मंडल कमीशन गठित हुआ. इस आयोग का गठन सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की पहचान के लिए किया गया था. वर्ष 1980 में आयोग ने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की. इस सिफारिश के आधार पर ही वर्ष 1990 में तत्कालीन पीएम वीपी सिंह ने इसे लागू कर दिया.